1.1 संगठन का विवरण, कार्य और कर्तव्य

राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद् को मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा शिक्षा विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान के रूप में स्थापित किया गया। नवीं योजना के अंतर्गत एक अप्रैल 1996 को इसके शैक्षिक और प्रशासनिक कार्यों की शुरूआत हुई। एन0 सी0 पी0 यू0 एल0 को उर्दू भाषा के विकास के लिए राष्ट्रीय नोडल संस्था नियुक्त किया गया है और शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण स्वायत्त संस्था माना गया है। जो उर्दू भाषा के विकास और उर्दू शिक्षण को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए तत्पर है।

एन0 सी0 पी0 यू0 एल0 को अरबी और फ़ारसी भाषा के विकास की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी दी गयी है। इन दो भाषाओं ने भारत में समग्र संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। परिषद् के मुख्य/व्यापक उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. उर्दू भाषा के विकास, उन्नति एवं प्रचार के लिए काम करना।
  2. वर्तमान परिदृश्य में वैज्ञानिक एवं यांत्रिक विकास से संबंधित ज्ञान के साथ-साथ नवीन विचारों के बारे में उर्दू भाषा में सूचनाऐं प्राप्त करने हेतु क़दम उठाना।
  3. उर्दू भाषा से संबंधित प्रत्येक व्यवस्था एवं सभी विषयों के बारे में, जो परिषद् के हवाले से हों, भारत सरकार को परामर्श देना।
  4. उर्दू भाषा हेतु परिषद् जिन योजनाओं को उपयुक्त समझती है, उनको लागू करना।
  5. उर्दू में टाइप राइटिंग एवं शॉर्टहैंड को विकसित करना।
  6. वर्तमान काल की विकसित तकनीकी आवश्यकताओं पर खरा उतरने हेतु उर्दू भाषा में कंप्यूटर के प्रयोग को विकसित करने में सहायता देना।
  7. अंग्रेज़ी, हिंदी एवं अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं के माध्यम से उर्दू भाषा के पठन-पाठन एवं प्रशिक्षण हेतु योजनायें एवं प्रोजेक्ट बनाना एवं उनको लागू करना।
  8. उर्दू भाषा के विकास एवं उन्नति हेतु राज्य सरकारों एवं अन्य संस्थाओं से संपर्क करना।
  9. उर्दू भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु ग़ैर सरकारी संस्थाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करना।
  10. भिन्न-भिन्न राज्यों की उर्दू अकादमियों की कार्यकुशलता के बीच संपर्क स्थापित करना।
  11. ऐसी संस्था या प्रतिष्ठान का सदस्य बनना, या उनसे साझेदारी करना जिन के उद्देश्य परिषद् के उद्देश्यों के अनुरूप हों।
  12. सोसाइटी के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु, व्यक्तियों, संस्थाओं या प्रतिष्ठानों से ख़रीदारी करना एवं उनसे चंदा, उपहार, दान, उपकरण एवं वसीयत में दी गयी वस्तुओं को प्राप्त करना।
  13. परिषद् की किसी भी संपत्ति को बेचना, उसके लिये कोई व्यवस्था करना, स्थानांतरित करना, गिरवी रखना, या अन्य प्रकार से प्रयोग में लाना। यह भी शर्त है कि परिषद् की कोई भी अचल संपत्ति केंद्र सरकार की पूर्व मान्यता के बिना न तो स्थानांतरित की जाए एवं न ही बेची जाए।
  14. बिना ज़मानत या ज़मानत के साथ धन एकत्रित करना एवं उधार लेना, परिषद् की सभी या कुछ संपत्तियों पर किराया वसूल करना, उसे रेहन रखना।
  15. परिषद् की किसी ऐसी निधि का निवेश करना जिसकी तत्कालिक आवश्यकता परिषद् के किसी उद्देश्य की पुर्ति हेतु न हो। यह निवेश एवं धन का उपयोग इस प्रकार किया जाएगा जिसके बारे में परिषद् समय-समय पर निर्णय लेगी।
  16. चेक, नोटिस, एवं विचार विनिमय योग्य अन्य संसाधनों को वसूल करना, तैयार करना, स्वीकार करना, पुष्टि करना एवं छूट देना।
  17. परिषद् के दायित्तवों को पूरा करने हेतु नियम एवं सिद्धांत बनाना एवं केंद्र सरकार के परामर्श या दिशा-निर्देश से समरूपता पैदा करने हेतु उनमें परिवर्तन करना या उन्हें निरस्त करना।
  18. एक ऐसा कोष स्थापित करना जिसमें निम्नलिखित क्रेडिट किये जाए :
    • (अ) केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध किए गए समस्त धन।
    • (ब) परिषद् को प्राप्त होने वाला शुल्क एवं अन्य लेखा की निधि।
    • (ज) परिषद् को अनुदान, उपहार, दान, पुरस्कार या हस्तांतरण से प्राप्त होने वाली समस्त निधि।
    • (द) परिषद् को अन्य किसी प्रकार एवं स्रोत से प्राप्त होने वाला समस्त धन।
  19. केंद्र सरकार की पेशगी मान्यता से परिषद् अपने कोष में क्रेडिट होने वाले समस्त धन को किसी बैंक में जमा कर सकती है या कहीं अन्य प्रकार से इसका निवेश कर सकती है।
  20. परिषद् उपहार, क्रय, अदला-बदली, लीज़ या अन्य प्रकार से भूमि, भवन या कोई अन्य संपत्ति अर्जित कर सकती है एवं अपने समस्त अथवा आंशिक लक्ष्य की प्राप्त हेतु अपनी संपत्ति या उनके बारे में जिन पर उसे अधिकार प्राप्त है, अपने लाभ के परिदृश्य में निर्णय ले सकती है।
  21. परिषद् का अपने व्यय एवं अपने अधिकारों को लागू करने एवं कार्यों के संबंध में होने वाले खर्चों को अपने कोष से पूरा करना।
  22. उचित अकाउंट एवं अन्य संबंधित रिकॉर्ड तैयार करना एवं केंद्र सरकार की प्रस्तावित सलाह के अनुरूप बैलेंसशीट सहित अकाउंट की संक्षेप वार्षिक सूची तैयार करना।
  23. केंद्र सरकार की प्रस्तावित सलाह के परिपेक्ष में केंद्र सरकार को अपनी कार्य कुशलता एवं अकाउंट की सत्यापित वार्षिक रिपोर्ट पेश करना।
  24. परिषद् को जैसा उचित लगे उसके अनुसार समितियों एवं उप-समितियों का गठन करना।
  25. संस्था के उपरोक्त उद्देश्य की प्राप्ति में सहायक होने वाली अन्य सक्रियताओं को पूरा करना।

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